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पद
ब्रजभाव के पद - बात क्या कहूँ नागर नट kii नागर नट की
बात क्या कहूँ नागर नट kii नागर नट कीहूँ दधि बेचन जात बृन्दाबन छिन लिये मोरी दधि की मटकी
मीराबाई
पद
श्री बृन्दावन मो अजयत ब्रिजराज बिराजत है
नैनमो भरपूर समाया, माया मे नट भे कछु पाया,बाका वनवारी मन भाया,
अमृत राय
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
नाना नाच नचाय के, नाचे नट के भेष।घट घट अबिनासी बसै, सुनहु तकी तुम सेष।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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दोहा
बरन बरन बर तंबुवन, दीन्हो तान वितान ।
गोप एक नट-भेष सजि, आयो बीच बजार ।तहँ खरभर लशकर पर्यो, सो अति रह्यो निहार ।।
रत्नकुंवरि बाई
सूफ़ी लेख
संत साहित्य
नाना नाच नचाय के, नाचे नट के भेष। घट घट अबिनासी बसै, सुनहु तकी तुम सेष।।
परशुराम चतुर्वेदी
राग आधारित पद
ठुमरी पर्च- छाड़ो रे मोरी बहियाँ, मै तो परत तिहारे पैयां।
कहा आन फसी दइ मारी, यही बार बार पछतैयां।।नट नागर गागर फोरी, कीनी बीच डगर बरजोरी।
फरहत
सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
डीठिबरन बाधी अटनु चढ़ि धावत न डरात।इतहिँ उतहिँ चित दुहुनु के नट लौ आवत जात।।193।।
बिहारी
छंद
चन्दन की चौकी चारु पड़ी सोता था सब गुन जटा हुआ।
ऐसे में ग्रहन समै सीतल एक ख्याल बड़ा अटपटा हुआ।भूतल ते नभ, नभ ते अवनी, अंग उछलै नट का बटा हुआ।।
सीतल
पद
दर्शनानंद के पद - मेरे नैनाँ निपट बँकट छबि अटके
'मीराँ प्रभू के रूप लुभानी गिरिधर नागर नट के
मीराबाई
कवित्त
रास लीला - अधर लगाइ रस प्याइ बाँसुरी बजाइ
नट-खट नवल सुघर नन्दनन्दन नेकरि कै अचेत चेत हरि कै जतन मैं