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साखी
पाप पुण्य यह मैं कियौ, स्वर्ग नरक हूँ जाउं।
पाप पुण्य यह मैं कियौ, स्वर्ग नरक हूँ जाउं।सुन्दर सब कछु मानिले, ताहीतें मन नांउ।।
सुंदरदास छोटे
पद
सतगुरु परम निधान, ज्ञानगुरु तें मिलै ।
ओ अं सब्द अलेख, लखि नरक निवारई ।जीवन मुक्ति बिदेस, पाँच पचीसहिँ हारई ।।
केशवदास
सूफ़ी कहावत
हूरान-ए-बहिश्ती रा दोज़ख़ बुवद आराफ़
स्वर्ग की अप्सराओं के लिए बरज़ख़(स्वर्ग और नरक के बीच का स्थान)भी नरक होता है।
वाचिक परंपरा
सूफ़ी लेख
कर्नाटक के संत बसवेश्वर, श्री मे. राजेश्वरय्या
ऐसी एक लालसा हजारों वर्षों तक नरक में गिरा देती है।”कूडल संगम देव।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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छंद
जीभि जोग अरु मोग जीभि बहु रोग बढ़ावै।
जीभि स्वर्ग लै जाय जीभि सब नरक दिखावै।जीभि मिलावै राम जीभि सब देह धरावै।।
बैताल
महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
जाको गहि सुरलोक जग चल्यौ नरक पथ छोरि।ऐसी बाँधि नबी दई सत्य धर्म की डोरि।।9।।
रसलीन
पद
वास्तविक ज्ञान -ज्ञान तहां जहां द्वन्द न कोई।
समता भाव भयौ उर अंतर, सार लियौ सब ग्रंथ बिलोई।।स्वर्ग नरक संशय कुछ नाहीं, मनकी सकल बासना धोई।
सुंदरदास छोटे
सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
जौ न जुगति पिय मिलन की धूरि मुकति मुँह दीन।जौ लहियै सँग सजन तौ धरक नरक हूँ की न।।75।।
बिहारी
राग आधारित पद
राग कान्हरा- शट तज नाव जगत सँग राचो
नरक अग्नि की सहिली आंचोचरणदास कहै 'सहजो' बाई
सहजो बाई
अष्टपदी
गुरू को तजि हरि सेब कभी नहिं कीजिये
गुरू को तजि हरि सेब कभी नहिं कीजियेबेमुख को नहिं ठौर नरक में दीजिये
चरनदास जी
पद
स्वजीवन के पद - राणाजी वो गिरिधर मित्र हमारै
मिरतक जीव बैंकुठ पठावै जीवत नरक मैं डारेंअकरण करन अगाध अगोचर निगम नेति कहि हारे
मीराबाई
कलाम
मेनु वकयाशदी से मैं नाम लूँ प्यारे सतगुरु काये मेरी नरक की भीती-ओ-आशा स्वर्ग छूटन दे
ख़्वाजा अयाज़ दास
पद
ना मैं धर्मी नाहीं अधर्मी ना मैं जती न कामी हो
ना हम नरक-लोक को जाते ना हम सुरग सिधारे होसब ही कर्म हमारा किया हम कर्वन तें न्यारे हो
कबीर
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की चौथी क़िस्त
माया का तीसरा छल यह है कि यह अपने को बाहर से अत्यन्त सुन्दर बनाकर दिखाती