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कलाम
दुनिया पे भरोसा करता है नादान कहीं धोका होगाइक चलती फिरती छाओं है ये मा'लूम नहीं कल क्या होगा
कामिल शत्तारी
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ नादान सँभल कर चल भरोसा क्या है दुनिया कान तू इतना मचल कर चल भरोसा क्या है दुनिया का
अली अहमद
दकनी सूफ़ी काव्य
तूतीनामा- चुन उस गोहराँ के समन्द का गम्भीर
दिल उसते वहीं तोड़ लेने लग्यावो नादान नाजान दो दिला लाई