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कुंडलिया
निस्प्रेही, निर्वेरता, निराकार, निरधार।
रामचरण व्यापक व्योम ज्यों, ताको सुमिरन सार।निस्प्रेही, निर्वेरता, निराकार, निरधार।।
रामचरन
पद
निराकार, साकार मे आप रही रघुवीर ।
निराकार, साकार मे आप रही रघुवीर ।सहजे घुन लागी रहे, कहते अमर फकीर ।।
मंगतदास जी
पद
अथ वन्दना- नमो नमो निरंजनम्, निराकार निरलेपकम।।
नमो नमो निरंजनम्, निराकार निरलेपकम।।सहजानन्द अखण्ड ब्रह्म, अजरौ, अमर, अनूपकम।।
महात्मा सेवादास जी
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पद
रमता राम रह्या भरपूर, निकट निरंजन नाहिन दूर।।
रमताराम निरंजन राई, नरी निराकार ल्यौ लाई।।
महात्मा नरीदास जी
पद
कबीर नाम दे पींपा रैदास, भवसागर की काटी पासा
निराकार निरंजना, अविनाशी गुरुदेव।।जन कल्याणदास विसरै नहीं, करै अलख की सेव।।
महात्मा कल्याणदास जी
राग आधारित पद
टोड़ी, चौताल- मेरैं तौ हरि नाम कौ आधार, जिन रचौ संसार
जिन रच्यौ अरस-कुरस जिमी-आसमान,निरंजन निराकार साँचौ, क्यों न सेवौ परबरदिगार।।
विलास ख़ान
सूफ़ी लेख
उदासी संत रैदास जी- श्रीयुत परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल-एल. बी.
विगताविगत घटँ नहिं कबहूँ, बसत बसै सब माहीं।। निश्चल निराकार अज अनुपम, निरभयगति गोविंदा।
हिंदुस्तानी पत्रिका
कुंडलिया
आनंदधन सुखराशि, चिदानंद कहिये स्वामी।
वार पार मधि नाहिं, कूंन बिधि करिये सेवा।नहिं निराकार आकार, अजन्मा अवगत देवा।।
रामचरन
सूफ़ी लेख
रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
जोग न भोग क्रिया नहिं जाके, कहौ नाम सत सोई।। निरंजन निराकार निरलेपी, निरवीकार निसासी।
भारतीय साहित्य पत्रिका
हिंडोलना
।। हिंडोलना ।।
परम सुख परमांन परमल, सरस सुगंध सनेह।।अघटा घटा घटा घट घट, निराकार निज देह।।
जगजीवन दास जी
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
निराकार आका है, अगम अगोचर देव। कई रूप नहि रूप हो, काइय न पावै भेव।।4।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत रोहल की बानी- दशरथ राय
निराकार अहंकार नहिं, किस विधि भाखूँ बैन। (जे) तुमरे भाग ललाट है, (ता) समझि लेवगा सैन।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
दोहा
विनय मलिका - निःकलंक नरसिंध जू निरंजन अलख अभेव
निःकलंक नरसिंध जू निरंजन अलख अभेवनिराकार निरभय मगन नारायण नित-देव