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गूजरी सूफ़ी काव्य
बन्दे हैं तेरी छब के मह से जमालवाले
मत हो तू नीला पीला बख़्ते सियह कर उजली,ऐ अलफ़ी शाल वाले, भगवे रूमाल वाले।
अब्दुल वली उज़लत
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(212) नीला कंठ और पहिरे हरा। सीस मुकुट नाचे वह खड़ा।।देखत घटा अलापै चोर। ऐ सखी साजन ना सखी मोर।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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पद
गुरू के चरण चित लागाजी
गुरु कृपा अंजन नैननमो लेतही भवभ्रम भागाजीलाल सुफेद पर काला नीला बोठा अम्बर बागाजी