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पद
चन्दन ख़ोर अंग अंग चढ़ाय अबीर लिए ऐंढों ऐडों डोलत पनघट
चन्दन ख़ोर अंग अंग चढ़ाय अबीर लिए ऐंढों ऐडों डोलत पनघटहो आपन मन भाए।।
हरिदास
कविता
कैसे जल लाऊ मै पनघट जाऊँ ।
कैसे जल लाऊ मै पनघट जाऊँ ।होरी खेलत नन्द लाड़िलो क्यों कर निबहन पाऊं ।
रसिक बिहारी
ना'त-ओ-मनक़बत
तेरे पनघट पे बादल अपनी गागर भरने आते हैंज़माने भर के प्यासे प्यास ’उम्रों की बुझाते हैं
मुज़फ़्फ़र वारसी
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पद
सुरत की साधना -सुर्त पनिहारी सतगुरु प्यारी चाल गगन के कूप।।
सुर्त पनिहारी सतगुरु प्यारी चली गगन के कूप।।प्रेम डोर ले पनघट आई भरी गगरिया खूब ।।
शिवदयाल सिंह
राग आधारित पद
होली पर्व- कोई उत जिन जैयों ठाढ़ो श्याम चित चोर।
कोई उत जिन जैयों ठाढ़ो श्याम चित चोर।रोके छैल गेल पनघट की, बंशी बट की ओर।
फरहत
ग़ज़ल
कुंज कुंज में उस की बातें पनघट पनघट उस की यादरूप-नगर में उस जोगी के रूप ने रंग जमाया है