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ग़ज़ल
ये अब्र ये मंज़र ये हवाएँ ये फ़ज़ाएँक्या शाहिद फ़ितरत की हैं मस्ताना अदाएँ
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
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ना'त-ओ-मनक़बत
जन्नत की फ़ज़ाएँ उन्हें बहला न सकेंगीजो आप की गलियों की हवा खाए हुए हैं
पीर नसीरुद्दीन नसीर
ना'त-ओ-मनक़बत
पुर-नूर फ़ज़ाएँ हैं पुर-कैफ़ हवाएँ हैंक्या बात मदीने की क्या ख़ूब नज़ारे हैं
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
बिखरी हुई है हर सू जो नूरानी फ़ज़ाएँदरबार-ए-फ़ज़ीलत की तो रंगत ही अलग है
सरफ़राज़ अहमद मज़ाक़
कलाम
ठान ली मैं ने भी साक़ी यहीं मर जाने कीकितनी दिलकश हैं फ़ज़ाएँ तेरे मय-ख़ाने की
पीर नसीरुद्दीन नसीर
ना'त-ओ-मनक़बत
रश्क-ए-फ़िरदौस न क्यूँ-कर हों फ़ज़ाएँ तेरीहै गुल-ए-तर से हसीं ख़ार-ए-मुग़ीलाँ तेरा
अफ़ज़ल वारसी
ग़ज़ल
दिल मुजस्सम शेर-ओ-नग़्मा वो सरापा रंग-ओ-बूक्या फ़ज़ाएँ हैं कि जिन में हल हुआ जाता हूँ मैं