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ना'त-ओ-मनक़बत
चश्म-ए-करम ख़ुदा-रा मख़दूम शाह-ए-मीनागिर्दाब-ए-मासियत में कुश्ती फँसी हुई है
शैख़ अबु सईद सफ़वी
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
हाँ मोहतसिब अगर ख़ुम-ओ-मीना शिकस्त होसाथ-ही तुम्हारे सर का भी कासा शिकस्त हो
सुलेमान शिकोह गार्डनर
ना'त-ओ-मनक़बत
जाम-ए-शराब-ए-’इरफ़ाँ हम को पिला दे साबिररंग-ए-दुई हमारे दिल से मिटा दे साबिर
आशिक़ मुस्तुफ़ाबादी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दोश मा बूदेम व जाम-ए-बादः-ओ-महताब-ए-ख़ुशवाँ पिसर मेहमाँ व इशरत रा हमः अस्बाब-ए-ख़ुश
अमीर ख़ुसरौ
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ना'त-ओ-मनक़बत
हम हुए सैराब 'इश्क़-ए-मुस्तफ़ा के जाम सेइस लिए वाबस्तगी अपनी है ख़ास-ओ-'आम से
अमीर हमज़ा निज़ामी
ग़ज़ल
मीना-ओ-सुबू भी शाद रहें आबाद रहे वो मय-ख़ानाहर वक़्त छलकता है जिस में तस्लीम-ओ-रज़ा का पैमाना
मंज़ूर आरफ़ी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अ'क्स-ए-रू-ए-तु चु दर आईना-ए-जाम उफ़्तादआरिफ़ अज़ परतव-ए-मय दर तमअ'-ए-ख़ाम उफ़्ताद
हाफ़िज़
कलाम
महफ़िल-ए-रिंदाँ में जाम मुल का होना चाहिएज़ोहद का क़ुल हो चुका क़ुलक़ुल का होना चाहिए