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ग़ज़ल
बहक कर बे-ख़ुदी में बोल उठा दरबार में ‘नौशा’ये क्या 'आलम है कैसा रंग है क्या माजरा यारा
आकिफ़ हुसैन शाहवली
गीत
अभी तो दिल हैं क़ाबू में अभी तो होश हैं बाक़ीअगर पी कर बहक उट्ठे तो मस्तानों का क्या होगा