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कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
गूजरी सूफ़ी काव्य
जिन्हों मन प्रेम का भटका
जिन्हों मन प्रेम का भटकातिलें तिल नेह का खटका
शाह अली जीव गामधनी
पद
भटका फिरता है क्यों हर सू समझाओ इस मत मारे को
भटका फिरता है क्यों हर सू समझाओ इस मत मारे कोमौजूद है हर शै के अंदर आ देख बनाने हारे को
कवि दिलदार
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सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शैख़ शर्फ़ुद्दीन अहमद यहया मनेरी
शुरफ़ा भटका मत फिरे चित् मत करे उदाससाइं बसे सर पर मेरे ज्यूं फूलन में बास
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
कबीर के कुछ अप्रकाशित पद ओमप्रकाश सक्सेना
लेहे लगाम ज्ञान कर घोड़ा, सूरत निरत चीत मटका। सेजे चडु सत्य गुरु जी के बचने, तो मीट गया मन का भटका।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
गूजरी सूफ़ी काव्य
जो जिवड़ा पियूँ सूँ लागा
तिहनूँ ऐ नाचते आखेंजिन्हों मन प्रेम का भटका