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रमता राम रह्या भरपूर, निकट निरंजन नाहिन दूर।।
रमता राम रह्या भरपूर, निकट निरंजन नाहिन दूर।।रमता राम रह्या भरपूर, निकट निरंजन नाहिन दूर।।
महात्मा नरीदास जी
दकनी सूफ़ी काव्य
धमक म्याने गमक मुढे गमक में चमक
आगे भरपूर पाछे भरपूर भरपूर सब ले ठारपूरा गुरु पाइये तो हर वख्त खुदीदार
केशव स्वामी
सूफ़ी लेख
कदर पिया- श्री गोपालचंद्र सिंह, एम. ए., एल. एल. बी., विशारद
तारीख कहिन कदर, सम्मत में भरपूर। मिर्जा कैवाँ जाह बहादुर, भए मगफूर।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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पद
श्री बृन्दावन मो अजयत ब्रिजराज बिराजत है
नैनमो भरपूर समाया, माया मे नट भे कछु पाया,बाका वनवारी मन भाया,
अमृत राय
गूजरी सूफ़ी काव्य
सुख़न की तारीफ़
सुख़न गम कूँ करे दिल बीच भरपूर।सुख़न सूँ दोज़खी सब जन्नती होवे,
अमीन गुजराती
कुंडलिया
आनंदधन सुखराशि, चिदानंद कहिये स्वामी।
रामचरण वन्दन करै, अलहं अखंडति नूर।सूक्ष्म स्थूल खाली नहीं, रह्यो सकल भरपूर।।
रामचरन
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
जो जन आयो सर्न तासकी चाह मिटाई।।दसधा आनिन की टेक विवेक भरपूर गुंसाई।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
तिर देवा थिर नहीं नहीं थिर माया रानी।।चरनदास लख दृष्टि भर एक शब्द भरपूर है।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य
तिर देवा थिर नहीं नहीं थिर माया रानी।। चरनदास लख दृष्टि भर एक शब्द भरपूर है।
परशुराम चतुर्वेदी
पद
हम फकीर जनम के उदासी निरंजनवासी
हम फकीर जनम के उदासी निरंजनवासी ।।ध्रु0।।सत कि भिच्छा दे मेरी माई मन का आटा भरपूर
शिवदिन केसरी
पद
जाने हैं बहुदुर मारग मिलै न सत संगति बिन लगी मतिमो हुर हूर
'अनंत' पराक्रम हरउँ सकलही भाव गती भरपूर
अनंत महाराज
पद
ग्रह चंद्र तपन जोत बरत है सुरत राग निरत तार बाजै
बाहरा-भीतरा एक आकासवत घरिया में अधर भरपूर लागीदेख दीदार मस्तान मैं होय रह्या सकल भरपूर है नूरा तेरा
कबीर
राग आधारित पद
रागिनी मुल्तानी धनाश्री चौताल - पाक मोहम्मद अल्ला रसूल तेरौ ही नूर जहूर
तू ही जग रम रह्यौ भरपूरवेचुन वेचगुन वेशुवे वेनमून