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कलाम
कामिल शत्तारी
शे'र
काम कुछ तेरे भी होते तेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़हाँ मगर मेरे ख़ुदा तेरा ख़ुदा कोई नहीं
पुरनम इलाहाबादी
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नज़्म
।। सन्तोष ।।
गर यार की मर्ज़ी हुई सर जोड़ के बैठे।घर बार छुड़ाया तो वहीं छोड़ के बैठे।