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सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
पास आने को मिरे यारो मसाफ़त कुछ न थीग़ौर कर देखा तो मैं भी दिल से तेरे दूर था
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
हज़रत सयय्द अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी का पंडोह शरीफ़ से किछौछा शरीफ़ तक का सफ़र-अ’ली अशरफ़ चापदानवी
सूफ़ीनामा आर्काइव
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कलाम
पास आने को मेरे बोद-ए-मसाफ़त कुछ न थीग़ौर कर देखा तो मैं ही दिल से तेरे दूर था
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ना'त-ओ-मनक़बत
जौहर नूरी
सूफ़ी लेख
हज़रत ख़्वाजा नूर मोहम्मद महारवी - प्रोफ़ेसर इफ़्तिख़ार अहमद चिश्ती सुलैमानी
जब मैं नज़दीक गया तो आप उठे और मुआ’नक़ा किया फिर अपने पास ही तख़्त पर
मुनादी
सूफ़ी लेख
तसव़्वुफ का अ’सरी मफ़्हूम - डॉक्टर मस्ऊ’द अनवर अ’लवी काकोरी
मैं अपने पैर से काँटा निकालने को झुका ही था कि महबूब का कजावा आँखों से