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ना'त-ओ-मनक़बत
तू नौशा-ए-बाग़-ए-इरम तू यूसुफ़-ए-मिस्र-ए-करमतू ख़ुद है मीर-ए-कारवाँ मख़्दूम-ए-साबिर कलियरी
ज़हीन शाह ताजी
ना'त-ओ-मनक़बत
जरस हो या दर्रा जादा हो या मंज़िल कि ऐ रहरवहक़ीक़त कारवाँ की एक मीर-ए-कारवाँ तक है
तल्हा रिज़वी बरक़
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ग़ज़ल
ग़नीमत जानिए अब उन के नक़्श-ए-पा को ऐ 'अख़्तर'कि जो बाक़ी हैं मीर-ए-कारवाँ के देखने वाले
अख़्तर महमूद वारसी
ग़ज़ल
तरीक़-ए-'इश्क़ में गो कारवाँ पर कारवाँ बदलेन हम ने रहगुज़र बदली न मीर-ए-कारवाँ बदला
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
सूफ़ी कहानी
तपते बयाबान में एक शैख़ का नमाज़ पढ़ना और अहल-ए-कारवाँ का हैरान रह जाना- दफ़्तर-ए-दोउम
एक चटयल मैदान में एक ज़ाहिद ख़ुदा की इ’बादत में मसरूफ़ था। मुख़्तलिफ़ शहरों से हाजियों
रूमी
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
फ़ारसी कलाम
ऐ अमीर-ए-कारवाँ ऐ शाह-ए-ख़ूबाँ बुल-'उलायक निगाह-ए-लुत्फ़ कुन सू-ए-ग़रीबाँ बुल-'उला
शमीम गौहर
कलाम
तरीक़-ए-'इश्क़ में गो कारवाँ पर कारवाँ बदलान लेकिन रह-गुज़र बदली न मीर-ए-कारवाँ बदला
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
तु अपना कारवाँ ले चल न ग़म कर मेरे ज़र्रों काइन्हीं ज़र्रों से हो जाएगा फिर इक कारवाँ पैदा
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
तरीक़ा-ए-सुहरवर्दी की तहक़ीक़-मीर अंसर अ’ली
ज़ैल में दो आ’लिमाना ख़त तहरीर किए जाते हैं जो जनाब मौलाना मीर अनसर अ’ली चिश्ती
निज़ाम उल मशायख़
ना'त-ओ-मनक़बत
पीर-ए-पीराँ मीर-ए-मीराँ हज़रत-ए-ग़ौसुल-वराताजदार-ए-अहल-ए-'इरफ़ाँ हज़रत-ए-ग़ौसुल-वरा