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जानी यार न हासल होंदे
जानी यार न हासल होंदे, फिर लाख करोड़ीं मुल नूं ।देख दीदार कोई दम लाहा, अते जान ग़नीमत गुल नूं ।
हाशिम शाह
ग़ज़ल
जाम मय-ए-अलस्त सीं बे-ख़ुद हूँ ऐ 'सिराज'दौर-ए-शराब-ओ-शीशा-ए-पुर-मुल सीं क्या ग़रज़
सिराज औरंगाबादी
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नहीं कबूल इबादत तेरी
नहीं कबूल इबादत तेरी, तूं जब लग पाक न होवें ।आमल ख़ाक पवे मुल तेरा, पर जब लग ख़ाक न होवें ।
हाशिम शाह
फ़ारसी कलाम
पैमान: ब-मुल शीश: ब-क़ुलक़ुल ना सर-ए-दाश्तसाग़र देह-ओ-साग़र कश-ओ-मैख़ान: तू बूदी
ग़ुलाम इमाम शहीद
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी तहज़ीब की तश्कील में अमीर ख़ुसरो का हिस्सा - मुनाज़िर आ’शिक़ हरगानवी
फ़रोग़-ए-उर्दू
ग़ज़ल
हर्फ़ जो रखते हो मुझ पर यहाँ मिरा क्या इख़्तियारजाम-ए-मुल की कैफ़ियत सरशार कहता है कि बोल