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ग़ज़ल
हम हैं मुश्ताक़-ए-जवाब और तुम हो उल्फ़त सीं बई'दनक़्द-ए-दिल गर तुम कूँ पहुँचा है तो भिजवा देव रसीद
सिराज औरंगाबादी
बैत
तुम्हारे दीद के मुश्ताक़ सर-ब-सज्दा हैं
तुम्हारे दीद के मुश्ताक़ सर-ब-सज्दा हैंनक़ाब अब तो उलट दीजिए ख़ुदा के लिए
वहशी वारसी
कलाम
खड़ा हूँ कब से मैं दर पर तिरे मुश्ताक़ दर्शन काइधर भी इक निगाह-ए-लुत्फ़ सदक़ा अपने जोबन का
क़ाज़ी उम्राओ अली जमाली
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शे'र
अहक़र बिहारी
शे'र
इस आईना-रू के वस्ल में भी मुश्ताक़-ए-बोस-ओ-कनार रहेऐ आ’लम-ए-हैरत तेरे सिवा ये भी न हुआ वो भी न हुआ
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
सूफ़ी शब्दावली
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो की सूफ़ियाना शाइ’री - डॉक्टर सफ़्दर अ’ली बेग
मुनादी कर्द हुस्न-ए-जलवः मुश्ताक़।कि ऐ कि दर्द-ए-मा कू जान आ’शिक़।।