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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मुश्त-ए-ख़ाक-ए-ख़ुदम अंदाख़्तः-अम दर रह-ए-तूसर-ए-मा ख़ाक-ए-रहत बर सर-ए-रफ़्तार बिया
शाह अकबर दानापूरी
ग़ज़ल
थी मुयस्सर 'अर्श या अब है असीर-ए-मुश्त-ए-ख़ाकवाह क्या आग़ाज़ था और क्या हुआ अंजाम-ए-रूह
ख़वाजा वज़ीर लखनवी
बैत
मुश्त-ए-ख़ाक-ए-मा सरापा फ़र्श-ए-तस्लीम अस्त व बस
मुश्त-ए-ख़ाक-ए-मा सरापा फ़र्श-ए-तस्लीम अस्त व बससज्दः-ए-मा रा जबीने-ओ-सरे दरकार नीस्त
बेदिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
कुछ बुल-'अजब नहीं है नर्गिस अगर करे गुलये मुश्त-ए-ख़ाक अपने आँसू से सानता हूँ
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ना'त-ओ-मनक़बत
आब आमद वो कहे और मैं तयम्मुम बरख़ास्तमुश्त-ए-ख़ाक अपनी हो और नूर का हाला तेरा