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ना'त-ओ-मनक़बत
दुख रज रज दाता नूँ सुनाइए मेले ने विछड़ जानाजीवें मंदा ऐ दाता नूँ मनाइए मेले ने विछड़ जाना
बरी निज़ामी
पद
प्रकीर्ण के पद - चरण रज महिमा मैं जानी
चरण रज महिमा मैं जानीजिहि चरणन से गंगा प्रकटी भगीरथ कुल को तारी
मीराबाई
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी गुलशने इश्क़
......... ........... ............. ............ तुजवहीं जाओ दरवेश धर के रज
नुसरती
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पद
श्री बृन्दावन मो अजयत ब्रिजराज बिराजत है
गुन गाय भव बंध न करे,जमुना जल कल्लोल, लोल लोल का रज
अमृत राय
सूफ़ी लेख
कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
झटपट कटक चढै जबैं पृथीसिंह मल मट्ट रज तुरंग चढि गगन रवि ढक्कढढ्कि यतबट्ट
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
अहंकार हू ते तीन गुण सत रज तम,तम हू ते महाभूत विषय पसार है।
हिंदुस्तानी पत्रिका
पद
धन्य धन्य स्वामी हरिदासजी दयालु पदवी हरि दई।
आदि निरंजन पन्थ पकडयो पाप ताप निकंदना।जन हरिदास ब्रह्मप्रकाश सतगुरु सन्त रज पद वंदना।।
संतदास जी
पद
जोति जगमग घूरे अनहद आतमा हरि पद छिवे।
दत्त गोरख कबीर नामदेव छके सनक सनंदना।जन हरिदास ब्रह्मप्रकाश सतगुरु सन्त रज पद वंदना।।
संतदास जी
पद
ज्ञान गोरष मिले जब तें मूठ काठौ कर गई।
काया कसणी देय भलि विधि जोग जुगति जानंदना।जन हरिदास ब्रह्मप्रकाश सतगुरु सन्त रज पद वंदना।।
संतदास जी
दोहरा
सन्त जन पन्हियॉ ले खडा राहू ठाकुर-द्वार
सन्त जन पन्हियॉ ले खडा राहू ठाकुर-द्वारचलत पाछे हूँ फिरों रज उड़त लेऊँ सीर
तुकाराम
पद
पांच तत्व गुण रचित माया तहां मन नहिं लाइयो।
पवन षरचै सदा अरचै भाव भक्ति चित चंदना।जन हरिदास ब्रह्मप्रकाश सतगुरु सन्त रज पद वंदना।।
संतदास जी
पद
निवृत्ति, ग्यान, विचार, शील संतोष भलि विधि धारियो।
देव निरंजन गादि दीन्ही पटा जगस्या अति घना।जन हरिदास ब्रह्मप्रकाश सतगुरु सन्त रज पद वंदना।।
संतदास जी
पद
जो जीव जगप्रवाह तें टल शरण तुमरी आइहैं।
पांच कोटि जू जीव तुम संग काटिहै कर्म वंधना।जन हरिदास ब्रह्मप्रकाश सतगुरु सन्त रज पद वंदना।।