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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
तुम ही ख़ुदा के शेर हो शेर-ए-ख़ुदा 'अलीख़ैबर को फ़तह तुम ने ही तन्हा क्या 'अली
उवेस रज़ा अम्बर
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ना'त-ओ-मनक़बत
सानी-ए-बद्रुद्दुजा शेर-ए-ख़ुदा कुछ और हैरम्ज़-ए-इल्लल्लाह में मुश्किल-कुशा कुछ और है
रियाज़ अहमद
ग़ज़ल
कामता प्रसाद होश
सूफ़ी कहानी
शेर भेड़िए और लोमड़ी का मिलकर शिकार को निकलना - दफ़्तर-ए-अव्वल
शेर, भेड़िया और लोमड़ी मिलकर शिकार की तलाश में पहाड़ों पहाड़ों निकल गए अगरचे शेर-ए-नर को
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
मुश्किल-कुशा शेर-ए-ख़ुदा मौला-'अली मौला-'अलीहैं जा-नशीन-ए-मुस्तफ़ा मौला-'अली मौला-'अली
अमीर बख़्श साबरी
ना'त-ओ-मनक़बत
'अली महबूब-ए-नबी शेर-ए-ख़ुदा हक़ का वली'अली 'अली 'अली 'अली 'अली 'अली 'अली 'अली
मोहम्मद समी
ना'त-ओ-मनक़बत
फ़िदा उस नाम पर क्या ख़ूब शेर-ए-यज़्दाँ हैबलाओं से रहे वो हिफ़्ज़ में जो तिफ़्ल-ए-नादाँ है