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सूफीनामा शब्दकोश
rubaa.ii
रुबाईرباعی
quatrain, four-lines of poetry
उर्दू और फ़ार्सी का एक छंद- विशेष जिसका मूल वज्न १ तगण १ यगण एक सगण और एक मगण होता है (ssi, ISS, ॥s, ss), इसके पहले दूसरे और चौथे पद में काफ़िया होता है, कभी-कभी चारों ही सानुप्रास होते हैं, परंतु अच्छा यही है कि चौथा सानुप्रास न हो।
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सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ फ़ख़्रुद्दीन इ’राक़ी रहमतुल्लाह अ’लैह
रुबाई’यारब तू ब-ख़ुद मरा तवंगर गरदां
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह अकबर दानापुरी
एक रुबाई भी इस तअ’ल्लुक़ को ज़ाहिर करती है :शागिर्द वहीद के हैं दोनों अकबर
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
हम दिल-बरी-ओ-नाज़स्त कि ब-सूरत-ए-नियाज़स्तचे नियाज़ शान-ए-ख़ासस्त ज़े शुयून-ए-दिल-रुबाई
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी साहित्य
मज्म 'उल् बह्रैन
दर हमः ऊस्त ज़ाहिर-ओ-हमः अज़ूस्त जल्व:गर अव्वल ऊस्त-ओ-आख़िर ऊस्त-ओ-ग़ैरे ऊ मौजूद न-बाशद।रुबाई’