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शे'र
ख़फ़ा सय्याद है चीं बर जबीं गुलचीं है क्या बाइ'सबुरा किस का किया तक़्सीर की हम ने भला किस की
आसी गाज़ीपुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
अमीर बख़्श साबरी
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ग़ज़ल
चराग़-ए-मह सीं रौशन-तर है हुस्न-ए-बे-मिसाल उस काकि चौथे चर्ख़ पर ख़ुर्शीद है अक्स-ए-जमाल उस का
सिराज औरंगाबादी
दोहरा
कोट शरीफ है नूर खुदाई फ़खर रौशन जमीरे कामल पीरे ।
कोट शरीफ है नूर खुदाई फ़खर रौशन जमीरे कामल पीरे ।कसम खुदा दी मुरशद हादी नज़र जैंदी अकेरे कामल पीरे ।
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
सूफ़ी कहावत
चराग़-ए- के ऊ ख़ानः रौशन कुनद बरूख़त उफ़्ताद कार-ए-दुश्मन कुनद
वो चिराग जो घरों को रोशनी देता है, अगर वह किसी के कपड़ों पर गिरे, तो दुश्मन की तरह काम करेगा।
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुदा के नाम से रौशन है नाम-ए-’अब्दुल्लाहकलाम-ए-मुस्तफ़वी है कलाम-ए-’अब्दुल्लाह
मयकश अकबराबादी
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
नज़र जिस की पड़ी उस ने पय-ए-सज्दः जबीं रख दीये कैसी दिलकशी उस बुत में सूरत-आफ़रीं रख दी