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कलाम
शकील बदायूँनी
ग़ज़ल
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ना'त-ओ-मनक़बत
दर-ब-दर फिरता हूँ मैं हैराँ-ओ-मुज़्तर या 'अलीकीजै आसान जो मुश्किल है मुझ पर या 'अली
नस्र फुलवारवी
फ़ारसी कलाम
बे-हिजाबानः दर आ अज़ दर-ए-काशान:ए-माकि कसे नीस्त ब-जुज़ दर्द-ए-तू दर ख़ान:-ए-मा
शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी
सूफ़ी कहावत
न सब्र दर दिल-ए-आशिक़, न आब दर गि़रबाल
प्रेमी के दिल में धैर्य वैसे ही नहीं हो सकता, जैसे छलनी में पानी को रखा नहीं जा सकता।
वाचिक परंपरा
फ़ारसी कलाम
आँ कीस्त निहाँ दर ग़म ईं कीस्त निहाँ दर दिलदिल रक़्स-कुनाँ दर ग़म ग़म रक़्स-कुनाँ दर दिल
जिगर मुरादाबादी
सूफ़ी कहावत
ता अब्लहा दर जहान अस्त, मुफ़्लिस दर नमी मांद
जब तक दुनिया में मूर्ख मौजूद रहेंगे, ग़रीब बेबस नहीं होंगे।
वाचिक परंपरा
दोहरा
करदी ख़ाक तुहाडे दर दी
करदी ख़ाक तुहाडे दर दी, सभ दूर अक्खीं दे परदे ।कित बिधि ख़ाक असां हत्थ आवे, भला आख दिते बिन सिर दे ।
हाशिम शाह
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
गुल दर बर व मय दर कफ़ व मा'शूक़ः ब-कामस्तसुल्तान-ए-जहानम ब-चुनींं रोज़-ए-ग़ुलामस्त