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ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुदा के नूर से रौशन हुआ है दो-जहाँ बे-शककि उस के मो'तरिफ़ हैं ये ज़मीन-ओ-आसमाँ बे-शक
मुस्तफ़ा ग़ज़ाली
सूफ़ी शब्दावली
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ना'त-ओ-मनक़बत
रिसालत का मुनव्वर उन के सर पर ताज है बे-शकमोहम्मद की शफ़ा'अत का जहाँ मुहताज है बे-शक
मुस्तफ़ा ग़ज़ाली
शे'र
वह्म है शक है गुमाँ है बाल से बारीक हैइस से बेहतर और मज़मून-ए-कमर मिलता नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
सूफ़ी लेख
हज़रत मुल्ला बदख़्शी- पंडित जवाहर नाथ साक़ी देहलवी
शक नीस्त दरीं कि आ’रिफ़ बिल्लाह अस्तदर्दश हमः ला-ईलाहा इल्लाह अस्त
निज़ाम उल मशायख़
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
हम तुइ मा’शूक़-ओ-आ’शिक़ नीस्त शकऐ कि गश्ती वाक़िफ़ अज़ असरार-ए-इ’श्क़
सूफ़ीनामा आर्काइव
दकनी सूफ़ी काव्य
ख़जान ए इबादत
जो है मुज़मिरात में सुनाया हू जानके शक किसके तई ना पड़े तूँ पछान
शाह मुहम्मद हैदराबादी
कलाम
दिल दिलीर करे अचु आशिक, सुस्त यकीन न थीउ तू।टोड़े शक गुमान सभेई, प्रेमी प्यालो पीउ तू।
सचल सरमस्त
ग़ज़ल
वही बे-शक मस्त क़लंदर दे सौदा दस्त ब-दस्ताकर बंद अयाज़ कहानी, दे फ़क़्र की ख़ास निशानी