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कलाम
'सौदा-गर' 'आशिक़ यही कहता है शब-ओ-रोज़हाफ़िज़ मिरे सीने में है मिर्ज़ा मिरे दिल में
शाह सिद्दीक़ सौदागर
सूफ़ी लेख
शैख़ सा’दी का तख़ल्लुस किस सा’द के नाम पर है ?
मरा दर निज़ामिया ऊ रा बूदशब-ओ-रोज़ दर बहस-ओ-तकरार बूद
एजाज़ हुसैन ख़ान
ग़ज़ल
बे तेरी दीद के आफ़त में है ‘कैफ़ी’ शब-ओ-रोज़दिन क़यामत का है दिन रात बलिय्यात की रात
कैफ़ी हैदराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
है शब-ओ-रोज़ तसव्वुर में ज़ियारत हासिलसामने है मिरे दरबार तुम्हारा दाता
पीर नसीरुद्दीन नसीर
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ग़ज़ल
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
शब-ओ-रोज़ पीर की दीद है शब-ओ-रोज़ रिंदों की 'ईद हैमेरा पीर 'ईद का चाँद है मुझे दीद-बाज़ी सिखा दिया
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
नज़्म
क़ौमी यक-जेहती
या'नी फैलाए शब-ओ-रोज़ वफ़ा की ता'लीमएक मय-ख़ाना हो एक साक़ी हो और एक ही जाम
अज़ीज़ वारसी देहलवी
ना'त-ओ-मनक़बत
मौत को अपनी शब-ओ-रोज़ तलब करते हैंऐ ज़हे लज़्ज़त-ए-आज़ार रसूल-ए-’अरबी
ख़्वाजा नाज़िर निज़ामी
सूफ़ी लेख
चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
ना'त-ओ-मनक़बत
कोई ऐसा कलमा-ए-जाँफ़िज़ा कि है जैसा कलमा-ए-मुस्तफ़ान सहीफ़ा-ए-शब-ओ-रोज़ में न कतीबा-ए-मह-ओ-साल में