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ग़ज़ल
न रोता ज़ार ज़ार इतना न करता शोर-ओ-शर इतनाइलाही क्या करूँ दर्द-ए-जिगर इतना जिगर इतना
सफ़ी औरंगाबादी
शे'र
यही ख़ैर है कहीं शर न हो कोई बे-गुनाह इधर न होवो चले हैं करते हुए नज़र कभी इस तरफ़ कभी उस तरफ़
अकबर वारसी मेरठी
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कवित्त
विटप लता कढ़ी है चाप दाप सी बढ़ी है
सुमन सुमन वेई शर ऐचि ताने,महा विष साने जे पराग रहे भरि के।
मुबारक अली बिलग्रामी
पद
पर पुरूष की चेटकी नारी नाचती निज्यानंद ।
सद सलीते शर पर लीते विशम नही भावे,निन्यानंद गावत फिरे चेटकी भुली ज्यावे ।।
केशव स्वामी
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
अपने नहिं पठवत नँदनंदन हमरेउ फेरि धरे।। मसि खूँटी, कागर जल भीजे, शर दव लागि जरे।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
सोज़-ओ-साज़-ए-ऊस्त दर हर तनतनःहर चे आयद दर नज़र अज़ ख़ैर-ओ-शर
सूफ़ीनामा आर्काइव
चौपाई-दोहा
महाभारत युद्ध का वर्णन
दुर्योधन पर चका चलाये। गमा रोपि कुरुनाथ बचाये।।क्षत्री घेरि लगे शर मारन। जुरे आइ केते हथियारन।।
सबल सिंह चौहान
बैत
बद-ओ-नेक रा बज़्ल कुन सीम-ओ-ज़र
बद-ओ-नेक रा बज़्ल कुन सीम-ओ-ज़रकि ईं कस्ब-ए-ख़ैरस्त-ओ-आँ दफ़'अ-ए-शर