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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी कहानी
सुल्तान महमूद का एक रात चोरों के साथ शरीक रहना -दफ़्तर-ए-शशुम
एक रात को सुल्तान महमूद भेस बदल कर निकला और चोरों की जमाअ’त के साथ हो
रूमी
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कलाम
फ़ना होना मोहब्बत में हयात-ए-जावेदानी हैकिसी क़ातिल पे दम निकले तो लुत्फ़-ए-ज़िंदगानी है
फ़ना लखनवी
ना'त-ओ-मनक़बत
हयात-अफ़्ज़ा निगार-ए-शहर-ए-सरकार-ए-मदीना हैसहाब-ए-रहमत-ए-बारी यहाँ हर दम बरसता है