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ना'त-ओ-मनक़बत
गो नूह की कश्ती थी बड़ी लंबी-ओ-चौड़ीलेकिन न मोहम्मद के सफ़ीने के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर
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ना'त-ओ-मनक़बत
ज़िंदगी के तूफ़ाँ में जबकि ना-ख़ुदा तुम होक्यूँ न हों ख़ुदा वाले मुतमइन सफ़ीने से
शकील बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
जब तू आया है सफ़ीने का मुहाफ़िज़ बन करमौज-ए-तूफ़ाँ भी तिरे नाम से कतराई है
ख़ालिद नदीम बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
दो-क़दम बढ़ के क़दम चूमेंगे लब साहिल केहोगा जिस के भी सफ़ीने में मदीने वाला
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
ग़ज़ल
ले के साहिल पे सफ़ीने को पहुँचते हैं वहीअपने दिल में जो फ़रोग़-ए-’अज़्म-ए-सफ़र रखते हैं
सग़ीर अहमद फ़रोग़
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़तर हो किस तरह तूफ़ाँ का उस सफ़ीने कोकि जिस के आप ही हैं ना-ख़ुदा ग़रीब-नवाज़
मंज़ूर आरफ़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
वारिस के सफ़ीने को क्या डर है हवादिस काजब वारिस-ए-क़ुद्रत ने ख़ुद उस की बिना डाली