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सूफ़ी लेख
शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
फ़सानः इस्त मुतव्वल ततावुल-ए-ज़ुल्फ़्तसमाअ’-ए-मुख़्तसर ज़ाँ समर दरेग़ म-दार
मयकश अकबराबादी
महाकाव्य
।। अंगदर्पण ।।
रोमावलि कुच स्यामता लखि मन लहयो विचार।समर भूप उर सीस पर धरी फरी समरार।।134।।
रसलीन
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
खंजन मनरंजन जन जौ पै, कबहुँ नाहिं सतरात। पंख पसारि न उड़त, मंद ह्वै समर समीप बिकाते।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
कुंडलिया
पैहौ कीरति जगत में, पीछे घरो न पांव।
पैहौ कीरति जगत में, पीछे घरो न पांव।छत्री कुल के तिलक हे, महा समर या ठांव।।
दीनदयाल गिरि
सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
समरस समर सकोच बस बिबस न ठिक ठहराइ।फिरि फिरि उझकति फिरि दुरति दुरि दुरि उझकति आइ।।527।।
बिहारी
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
बस करि असाम किरवान लहि पान न्हान सागर कियौ। भनि मनीराम सतसठि समर जिन जित्तै सम को वियौ।।7।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
नज़्म
दयार-ए-इश्क़ में अपना मक़ाम पैदा कर
मैं शाख़-ए-ताक हूँ मेरी ग़ज़ल है मेरा समरमिरे समर से मय-ए-लाला-फ़ाम पैदा कर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
उम्मतें गुलशन-ए-हस्ती में समर-चीदा भी हैंऔर महरूम-ए-समर भी हैं ख़िज़ाँ-दीदा भी हैं