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ग़ज़ल
शब-ए-फ़ुर्क़त में याद उस बे-ख़बर की बार बार आईभुलाना हम ने भी चाहा मगर बे-इख़्तियार आई
हसरत मोहानी
नज़्म
क़ौमी यक-जेहती
ख़ार-ओ-ख़स ग़ुंचा-ओ-गुल बर्ग-ओ-शजर शाख़-ओ-समरसब गुलिस्ताँ के लिए हुस्न का गंजीना हैं
अज़ीज़ वारसी देहलवी
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दोहा
विनय मलिका - बड़े बड़े पापी अधम तारत लगी न बार
बड़े बड़े पापी अधम तारत लगी न बारपूँजी लगै कछु नंद की हे प्रभू हमरी बार
दया बाई
भजन
कौन ख़ता मो से भई पिया एक बार सनम तू भूला रे
कौन ख़ता मो से भई पिया एक बार सनम तू भूला रेतोंहरे रूठे ख़ल्क़ सब रूठा ख़्वेश कुटुम मुँह मोड़ा रे
अब्र मिर्ज़ापुरी
दोहा
सिख का माना सतगुरू गुरु झिड़कै लख बार
सिख का माना सतगुरू गुरु झिड़कै लख बार'सहजो' द्वार न छोड़िये यही धारना धार
सहजो बाई
सूफ़ी उद्धरण
दरिया जहाँ से एक-बार गुज़रता है देर-पा निशान छोड़ता जाता है।
दरिया जहाँ से एक-बार गुज़रता है देर-पा निशान छोड़ता जाता है।
वासिफ़ अली वासिफ़
शे'र
चाटती है क्यूँ ज़बान-ए-तेग़-ए-क़ातिल बार बारबे-नमक छिड़के ये ज़ख़्मों में मज़ा क्यूँकर हुआ
अमीर मीनाई
शे'र
आह ख़ुश बाशद कि बीनम बार-ए-दीगर रू-ए-दोस्तदर सुजूद आयम ब-मेहराब-ए-ख़म-ए-अबरू-ए-दोस्त
ज़ैबुन्निसा बेगम
फ़ारसी कलाम
आह ख़ुश बाशद कि बीनम बार-ए-दीगर रू-ए-दोस्तदर सुजूद आयम ब-मेहराब-ए-ख़म-ए-अबरू-ए-दोस्त