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शे'र
कश्ती है सुकूँ की मौजों में इतना ही सहारा काफ़ी हैमेरे लिए तो ऐ जान-ए-जहाँ बस नाम तुमहारा काफ़ी है
शाह तक़ी राज़ बरेलवी
शे'र
मक़्दूर क्या जो कह सुकूँ कुछ रम्ज़-ए-इ’श्क़ कोजूँ शम्अ' हूँ अगरचे सरापा ज़बान-ए-इ’श्क़
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
कलाम
अनवर फ़िरोज़पुरी
ग़ज़ल
तू सुकूँ नहीं कि अमाँ नहीं तू दवा नहीं कि दु'आ नहींमिरी ज़िंदगी को बदल न दे तिरी कौन सी वो अदा नहीं
मंज़ूर आरफ़ी
कलाम
तेरी आरज़ू से ख़ाली है जो दिल वो बे-सुकूँ हैतेरी आरज़ू है जिस को उसे भी सुकूँ कहाँ से
मोहम्मद समी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
'ख़ुसरव' अज़ इन्क़िलाब-ए-तू गरचे कि माँद बे-सुकूँहम ज़े-सुकूँ ब-दिल शवद ईं हम: इन्क़िलाब-ए-मन