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सूफ़ी लेख
चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
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नज़्म
सैंकड़ों साल हुए जब न मिला था पानी
किस के सर फ़त्ह का तारीख़ ने सेहरा बाँधासुर्ख़-रू कौन है दोनों में लहू या पानी
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
जमा’-ख़ातिर रखो तुम हश्र में भी सुर्ख़-रू होगेनहीं खोलूँगा महशर में मेरी जाँ मैं ज़बाँ अपनी
मुज़म्मिल ख़ान
ग़ज़ल
रू-ए-मुबीं है रू-ब-रू जल्वों में गुम नज़र भी हैअपने से बे-ख़बर भी हूँ अपनी मुझे ख़बर भी है
नख़्शब जार्चवि
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ ख़ुशा ताबानी-ए-रू-ए-मु'ईनुद्दीन हसनजिस से फूटी हिन्द में इस्लाम की पहली करिन
अनवर साबरी
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुश थे यूँ असहाब रू-ए-मुस्तफ़ा को देख करमुस्तफ़ा जिस तरह अनवार-ए-ख़ुदा को देख कर