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मुंझ मज़ीद शहीद हमेशा दिलबर डित्तड़े रोले ।
मुंझ मज़ीद शहीद हमेशा दिलबर डित्तड़े रोले ।भुल्ल गई सुरख़ी कज्जला साकूं हिजर कनूं तन कोले ।
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
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शे'र
आ’शिक़ इ’श्क़ माही दे कोलों फिरन हमेशा खीवे हूजींदे जान माही नूँ डित्ती दोहीं जहानीं जीवे हू
सुल्तान बाहू
शे'र
अरे दिल मिस्ल-ए-बुलबुल चुप हमेशा नाला-ज़न है तूँकहीं गुल-पैरहन गुल-रू की पाया कुछ ख़बर है रे
तुराब अली दकनी
शे'र
अकबर वारसी मेरठी
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साहब दरद हमेशा दरदी
साहब दरद हमेशा दरदी, जिन्हां दरद रहे नित मगरे ।साजन होन तबीब दुखां दे, जेहड़े रोग गवावन सगरे ।
हाशिम शाह
सूफ़ी उद्धरण
एक इन्सान ने दूसरे से पूछा ''आपने ज़िंदगी में पहला झूट कब बोला''? दूसरे ने जवाब दिया ''जिस दिन मैंने ये ऐ’लान किया कि मैं हमेशा सच्च बोलता हूँ'।
वासिफ़ अली वासिफ़
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- तीसरी दास्तान
मैं ख़ोजा नसरुद्दीन, मियां!आज़ाद हमेशा रहा किया!