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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
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ना'त-ओ-मनक़बत
बलाएँ ग़म की टलें और हवा-ए-कैफ़ चलीलिया ज़बान से जिस दम जो मैं ने नाम-ए-'अली
मोहम्मद हुज़ैफ़ा
कलाम
फिर चराग़-ए-लाला से रौशन हुए कोह-ओ-दमनमुझ को फिर नग़्मों पे उकसाने लगा मुर्ग़-ए-चमन
अल्लामा इक़बाल
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दर सीन: दारम कोह-ए-ग़म दानद अगर यार ईं क़दरशायद कि न-पसंदद दिलश बर जान-ए-मन बार ईं क़दर
अमीर ख़ुसरौ
ग़ज़ल
दरिया से हुई क़तरे को निदा तू और नहीं मैं और नहींतू मौज में मेरे हबाब बना तू और नहीं मैं और नहीं
अब्र मिर्ज़ापुरी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अब्र-ए-ख़ुश अस्त व वक़्त-ए-ख़ुश अस्त व हवा-ए-ख़ुशसाक़ी-ए-मस्त दादः ब-मस्ताँ सला-ए-ख़ुश