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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
कैसे बयाँ हो वस्फ़-ए-रिसालत-ए-मआब कादुनिया-ए-रंग-ओ-बू के हसीं इंतिख़ाब का
तुफ़ैल अहमद मिसबाही
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ना'त-ओ-मनक़बत
है हुस्न-ए-अज़ल अहमद-ए-मुख़्तार में आयाऔर जिन्न-ओ-मलक में ही वही नूर समाया
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
हुस्न-ए-ज़ात-ए-किबरिया का आईना कलियर में हैमुस्तफ़ा तैबा में 'अक्स-ए-मुस्तफ़ा कलियर में है
अमीर बख़्श साबरी
ना'त-ओ-मनक़बत
हरीम-ए-हुस्न-ए-हक़ दरबार-ए-महबूब-ए-इलाही हैकि दीदार-ए-ख़ुदा दीदार-ए-महबूब-ए-इलाही है
ज़हीन शाह ताजी
ना'त-ओ-मनक़बत
क्या बयाँ कर पाएगा कोई वक़ार-ए-फ़ातिमाबज़्म-ए-'आलम में बहुत हैं जाँ-निसार-ए-फ़ातिमा
उवेस रज़ा अम्बर
ना'त-ओ-मनक़बत
हुस्न-ए-अख़्लाक़ पयम्बर का सरापा लिक्खूँया'नी क़ुरआन मुक़द्दस को मैं पूरा लिक्खूँ
ख़्वाजा शायान हसन
ना'त-ओ-मनक़बत
हुस्न-ए-अख़्लाक़-ओ-नज़र से दिल मुसख़्ख़र कर लिएकर दिया वीरान सीनों को मोहब्बत का चमन
अनवर साबरी
ग़ज़ल
चराग़-ए-मह सीं रौशन-तर है हुस्न-ए-बे-मिसाल उस काकि चौथे चर्ख़ पर ख़ुर्शीद है अक्स-ए-जमाल उस का