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ना'त-ओ-मनक़बत
अदब से अ'र्ज़ है बा-चश्म-ए-तर ग़रीब-नवाज़इधर भी एक उचटती नज़र ग़रीब-नवाज़
पीर नसीरुद्दीन नसीर
ना'त-ओ-मनक़बत
अज्ञात
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पद
मरकज़ अर्ज़-ओ-समा का क़ायम ज़ात से है फ़ुक़रा की
मरकज़ अर्ज़-ओ-समा का क़ायम ज़ात से है फ़ुक़रा कीकाम जहाँ का जारी सब बर्कात से है फ़ुक़रा की
कवि दिलदार
कलाम
शकील बदायूँनी
शे'र
मेरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा,मुझे ज़िंदगी का अलम नहींजिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं
शकील बदायूँनी
ग़ज़ल
अब्दुल हादी काविश
शे'र
पढ़ पढ़ इ’ल्म हज़ार कताबाँ आ’लिम होए भारे हूहर्फ़ इक इ’श्क़ दा पढ़ न जाणन भुल्ले फिरन विचारे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
पढ़ पढ़ इलम हज़ार कताबाँ आलिम होए भारे हूहर्फ़ इक इश्क़ दा पढ़ न जाणन भुल्ले फिरन विचारे हू
सुल्तान बाहू
ग़ज़ल
दलील-ए-सुब्ह रौशन है सियह शाम-ए-अलम साक़ीख़ुदा का बा'द हर मुश्किल के होता है करम साक़ी