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फ़ारसी कलाम
ग़ैरत अज़ चश्म बरम रु-ए-तू दीदन न-देहमगोश रा नीज़ हदीस-ए-तू शुनीदन न-देहम
बू अली शाह क़लन्दर
ग़ज़ल
ऐ दोस्तो चश्म को खोल ज़रा देखो कैसा है माह-ए-लक़ाबे-शक है मोहम्मद नूर-ए-ख़ुदा शुबहा न कर इस में असला
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ब-चश्म-ए-मुनकरे म-निगर दर ऊ ख़्वारकि गुलहा गर्दद अंदर चश्म-ए-तू ख़्वार
महमूद शबिस्तरी
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फ़ारसी कलाम
हाशा लिल्लाह कज़ रुख़त चश्म अफ़्गनम सू-ए-दिगरख़ुश नमी-आयद ब-जुज़ रू-ए-तूअम रू-ए-दिगर
नूरुद्दीन हिलाली
कलाम
चश्म में ख़ल्क़ की गो मिस्ल-ए-हबाब आता हूँऐ'न-ए-दरिया हूँ हक़ीक़त में बहा जाता हूँ
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
चश्म नर्गिस बन गई है इश्तियाक़-ए-दीद मेंकौन कहता है कि गुलशन में तिरा चर्चा नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
तुर्क-ए-सफ़ेद-रूए- व सियह-चश्म-ओ-लालः-रंगमिस्लत नज़ाद मादर-ए-अय्याम शोख़-ओ-शंग
अमीर ख़ुसरौ
शे'र
नहीं लख़्त-ए-जिगर ये चश्म में फिरते कि मर्दुम नेचराग़ अब करके रौशन छोड़े हैं दो-चार पानी में
शाह नसीर
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
न मरा ख़्वाब ब-चश्म व न मरा दिल दर दस्तचश्म-ओ-दिल हर-दो ब-रुख़सार-ए-तू आशुफ़्तः-ओ-मस्त
अमीर ख़ुसरौ
ग़ज़ल
बा चश्म-ए-दिल दीदार कुन दिल में तेरे दिलदार हैअज़ दानः पैदा मी-शवद क्या बर्ग क्या गुल-ओ-ख़ार है
किशन सिंह आरिफ़
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ बाद-ए-मुश्क-बू ब-गुज़र सू-ए-आँ-निगारब-कुशा गिरह ज़े-ज़ुल्फ़श व बू-ए-ब-मन बयार