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ना'त-ओ-मनक़बत
रज़ा वारसी
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सूफ़ी उद्धरण
काइनात का कोई ग़म ऐसा नहीं है जो आदमी बर्दाश्त न कर सके।
काइनात का कोई ग़म ऐसा नहीं है जो आदमी बर्दाश्त न कर सके।
वासिफ़ अली वासिफ़
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ क़िब्लः-ए-ईमान-ए-मन गाहे नज़र बर मन फ़िगनऐ का'बः-ए-ईक़ान-ए-मन गाहे नज़र बर मन फ़िगन
लताफ़त वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ ज़े-कस्रत बर रुख़-ए-वह्दत नक़ाब अंदाख़्तीतालिबाँ रा ज़ीं हिजाब अंदर अ’ज़ाब अंदाख़्ती
फ़ज़ीहत शाह वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ बे-वफ़ा जानी कि ऊ बर बुल-वफ़ा 'आशिक़ न-शुदक़हर-ए-ख़ुदा बाशद कि बर लुत्फ़-ए-ख़ुदा 'आशिक़ न-शुद
रूमी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ख़ेज़ ऐ दिल ज़ीं बर अफ़्गन मरकब-ए-तहवील रावक़्फ़ कुन बर ना-कसाँ आँ आ'लम-ए-तातील रा
हकीम सनाई
फ़ारसी कलाम
ऐ ’आरिफाँ रा पेशवा गाहे नज़र बर मन फ़िगनऐ आ'शिक़ाँ रा रहनुमा गाहे नज़र बर मन फ़िगन