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सूफ़ी उद्धरण
मन भटक रहा है। किस के कहने से सो रहा है? यह ज़िंदगी कुछ दिनों की है और तू अपने दिमाग़ को सुस्त करके सो रहा है? सोच-समझ कर काम ले और ज़िंदगी का मक़सद समझने की कोशिश कर।
सय्यद मोहम्मद ताजुद्दीन
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कलाम
अब राह-ए-तसव्वुफ़ में मुम्किन है भटक जाएँगूँगों की हुकूमत को अंधों ने सँभाला है
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
ना'त-ओ-मनक़बत
आए हैं दर दर भटक कर ख़ाली कासा हम लिएकुछ तो दें बहर करम मख़्दूमा-ए-रब्बानिया