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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ दिल अर उक़बात बायद दस्त अज़ दुनिया ब-दारपाक-बाज़ी पेशः गैर व राह-ए-दीं कुन इख़्तियार
हकीम सनाई
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फ़ारसी कलाम
ब-रबूद ज़े दस्त ईं दिलम ए'जाज़-निगाहेज़ानस्त मरा हमदम-ओ-दम-साज़-निगाहे
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
फ़ारसी कलाम
अगर आँ तुर्क-ए-शीराज़ी ब-दस्त आरद दिल-ए-मा राब-ख़ाल-ए-हिंदुवश बख़्शम समरक़ंद-ओ-बुख़ारा रा
हाफ़िज़
बैत
अगर ख़ुफ़िया दह दिल ब-दस्त आवरी
अगर ख़ुफ़िया दह दिल ब-दस्त आवरीअज़ाँ बह कि सद रह शबीख़ूँ बरी
सादी शीराज़ी
दोहरा
बिन देखे मन मानै नाहीं औ दिष्ट माँह न होय
बिन देखे मन मानै नाहीं औ दिष्ट माँह न होयदेख बिचार जो मानै अवधू दिष्टा जोगी सोय
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
सूफ़ी कहावत
गरत अज़ दस्त बर आयद, दहनी शीरीं कुन,,मर्दी आं नीस्त कि मुश्ती बज़नी बर दहनी
अगर आपसे संभव हो, तो किसी के मुँह को मीठा कीजिए; किसी के मुँह पर मारना मर्दानगी की निशानी नहीं है
वाचिक परंपरा
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
न मरा ख़्वाब ब-चश्म व न मरा दिल दर दस्तचश्म-ओ-दिल हर-दो ब-रुख़सार-ए-तू आशुफ़्तः-ओ-मस्त