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सूफ़ी कहावत
ज़माना बा तू नासाज़द, तू बा ज़माना साज़।
अगर समय आपके लिए उपयुक्त नहीं हैं, तो आप खुद को उनके अनुसार बदलें।
वाचिक परंपरा
सूफ़ी लेख
क़व्वाली के इब्तिदाई साज़, राग ताल और ठेके
क़व्वाली के इब्तिदाई साज़ों की तफ़्सील किसी एक मज़मून या किताब से दस्तयाब नहीं होती, अलबत्ता
अकमल हैदराबादी
ग़ज़ल
बेदम शाह वारसी
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विषय
दिल
दिल
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ना'त-ओ-मनक़बत
साइम चिश्ती
कलाम
सँभल ऐ दिल किसी का राज़ बे-पर्दा न हो जाएये दीवानों की महफ़िल है कोई रुस्वा न हो जाए
अमीर बख़्श साबरी
ना'त-ओ-मनक़बत
दीन-ओ-दुनिया का हर इक साज़ मिलाया तू नेआईना हुस्न-ए-हक़ीक़त का दिखाया तू ने