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ना'त-ओ-मनक़बत
आल-ए-शब्बीर-ओ-शब्बर, फ़ातिमा-ज़हरा के दिलबरमेरा सरमाया है तेरी विला या ग़ौस-ए-आज़म
पीर नसीरुद्दीन नसीर
फ़ारसी कलाम
रू-ए-हर-दिलबर तजल्ली-गाह-ए-हुस्न-ए-रू-ए-ऊ-अस्तनिकहते काँ आवरद बाद-ए-सबा आँ बू-ए-ऊस्त
अहमद शाहजहाँपुरी
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कलाम
मैं कोझी मेरा दिलबर सोहणा, क्यूँकर उस नूँ भावा हूविहड़े साडे वड़दा नाहीँ लक्ख वसीलें पावाँ हू
सुल्तान बाहू
शे'र
दिलबर में दिल या दिलबर दिल में है'इ’श्क़' उस को बता किस तरह से ग़ैर कहूँ
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ग़ज़ल
मग़रूर न इतना हो दिलबर तू और नहीं मैं और नहींबे-वज्ह न मुझ से फेर नज़र तू और नहीं मैं और नहीं
पुरनम इलाहाबादी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दस्त बनेह बर दिलम अज़ ग़म-ए-दिल-बर म-पुर्सचश्म-ए-मन अंदर निगर अज़ मय-ओ-साग़र म-पुर्स
रूमी
ग़ज़ल
जिस के तुम दिलबर हो जिस दिल में तुम्हारी याद होवो हमेशा ख़ाक छाने वो सदा बर्बाद हो