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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ क़िब्लः-ए-ईमान-ए-मन गाहे नज़र बर मन फ़िगनऐ का'बः-ए-ईक़ान-ए-मन गाहे नज़र बर मन फ़िगन
लताफ़त वारसी
फ़ारसी कलाम
चीज़े म-फ़िगन बर तन-ए-लाग़र ज़े-बहारेअफ़्सान:-ए-मा पुर्स ज़े-नोक-ए-सर-ए-ख़ारे
जिगर मुरादाबादी
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फ़ारसी कलाम
ऐ ’आरिफाँ रा पेशवा गाहे नज़र बर मन फ़िगनऐ आ'शिक़ाँ रा रहनुमा गाहे नज़र बर मन फ़िगन
अब्दुल रहीम कुंज्पुरी
ग़ज़ल
हँसी भी ग़र्क़-ए-फ़ुग़ाँ है फ़ुग़ाँ को क्या कहिएबहार भी तो ख़िज़ाँ है ख़िज़ाँ को क्या कहिए
नीयाज़ मकनपुरी
ग़ज़ल
सायः-अफ़गन हो जो वो ज़ुल्फ़-ए-मोअ'म्बर आग मेंदूद-ए-पेचाँ बन के सुम्बुल हो मोअ'त्तर आग में
शाह नसीर
सूफ़ी शब्दावली
(चीख़ व पुकार) ׃साधक का अधीर होकर अपने प्रेम-उद्गारों को प्रकट करना. सूफ़ी इसे निंदनीय समझते हैं.
फ़ारसी कलाम
अज़ दर्द-ए-दिलम नालः-ओ-अफ़्ग़ाँ गिलः दारदवज़ ख़ून-ए-जिगर दीद:-ए-गिर्याँ गिलः दारद
ग़ुलाम हसन बीथवी
शे'र
तुम को कहते हैं कि आशिक़ की फ़ुग़ाँ सुनते होये तो कहने ही की बातें हैं कहाँ सुनते हो
मीर मोहम्मद बेदार
ग़ज़ल
तुम को कहते हैं कि आशिक़ की फ़ुग़ाँ सुनते होये तो कहने ही की बातें हैं कहाँ सुनते हो