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ग़ज़ल
ले के साहिल पे सफ़ीने को पहुँचते हैं वहीअपने दिल में जो फ़रोग़-ए-’अज़्म-ए-सफ़र रखते हैं
सग़ीर अहमद फ़रोग़
ना'त-ओ-मनक़बत
किसी पत्थर पे घिसने से न आब-ए-ज़र से जाता हैगुनह का दाग़ ज़िक्र-ए-साक़ी-ए-कौसर से जाता है
सग़ीर अहमद फ़रोग़
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कलाम
न हो क्यूँ मतला'-ए-अनवार-ए-'आलम उस की पेशानीवो पेशानी जो तेरे नक़्श-ए-पा से आश्ना भी है
महशर आरफ़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
हर मुसाफ़िर से मैं ख़ाक-ए-रह-ए-तैबा माँगूँख़ुश्क सहरा हूँ मगर इ’श्रत-ए-दरिया माँगूँ
रईस वारसी
फ़ारसी कलाम
बाद-ए-सबा चू ब-गुज़री बर-सर-ए-कु-ए-आँ परीक़िस्स:-ए-हाफि़ज़श ब-गो ताज़:-ब-ताज़: नौ-ब-नौ
हाफ़िज़
शे'र
रियाज़ ख़ैराबादी
दोहा
ये 'रहीम' मानै नहीं दिल से नवा जो होय
ये 'रहीम' मानै नहीं दिल से नवा जो होयचीता चोर कमान के नये ते अवगुन होय
रहीम
कलाम
ग़रीब दर-दर भटक रहे थे कहीं न हम को सुकूँ मिलाबना के अपना फ़क़ीर मुझ को ग़म-ए-जहाँ से छुड़ा दिया
अज्ञात
ना'त-ओ-मनक़बत
मिज़ाज-ए-नस्ल-ए-इंसाँ जिस ने बदला एक कलिमे सेमिटाया इक नज़र से इमतियाज़-ए-मा-ओ-तू क्या क्या
रईस अहमद नोमानी
ना'त-ओ-मनक़बत
कोई ऐसा कलमा-ए-जाँफ़िज़ा कि है जैसा कलमा-ए-मुस्तफ़ान सहीफ़ा-ए-शब-ओ-रोज़ में न कतीबा-ए-मह-ओ-साल में
रईस अहमद नोमानी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अहद रा सूरत-ए-मक़सूद अहमद बूद अहमद बूदन-बूद अज़ हक़ निशाँ वर बूद अहमद बूद अहमद बूद
 
 