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फ़र्श ज़मीं का सक़्फ़ समा का देखो किस बिस्तार का है
फ़र्श ज़मीं का सक़्फ़ सा का देखो किस बिस्तार का हैशम्स क़मर का चलना इस के ऊपर किस मिक़दार का है
कवि दिलदार
कलाम
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
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ग़ज़ल
आफ़त-ए-जान-ओ-दिल तो याँ वो बुत-ए-ख़ुद-फ़रोश हैपहले ही जिस के पेशकश सब्र-ओ-क़रार होश है
ख़्वाजा मीर दर्द
ना'त-ओ-मनक़बत
चढ़ गया मौसम पे फ़िरदौसी बहारों का ग़लाफ़वादीयों से हो रहा था नूर हक़ का इन्किशाफ़
महबूब गौहर इस्लामपुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
मक़ाम-ए-फ़र्श-ओ-फ़लक ही नहीं मक़ाम-ए-रसूलहरीम-ए-'अर्श की रिफ़अ'त है ज़ेर-ए-गाम-ए-रसूल
शकील बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
हफ़्त-आसमाँ हैं फ़र्श-ए-निआ'ल-ए-अबुल-ओ'लाअल्लाह रे औज-ओ-जाह-ओ-जलाल अबुल-उ'ला
बेदम शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
'अर्श सा फ़र्श-ए-ज़मीं है फ़र्श पा 'अर्श-ए-बरींक्या निराली तर्ज़ की नाम-ए-ख़ुदा रफ़्तार है
अहमद रज़ा ख़ान
कलाम
'अर्श को यूँ बनाए फ़र्श फ़र्श को यूँ बनाए 'अर्शगर्द-ए-रह-ए-वफ़ा बने दिल तेरी ख़ाक-ए-पा बने
मुनव्वर लखनवी
ग़ज़ल
'इश्क़ में बे-कार देखा ताज-ओ-तख़्त-ओ-फ़र्श-ए-गिलक़ैस को हर ख़ार-ए-फ़र्श क़ाक़ुम-ओ-संजाब था
अबुल हयात क़ादरी
दकनी सूफ़ी काव्य
ऐ पंच-भूत क्या है चुप इतना साँसा
अमीराँ सो बेहतर फ़कीराँ कलातेसमज फ़र्श मख़मल बगंबर बिछाते
शाह मियाँ तुराब दकनी
दकनी सूफ़ी काव्य
रिसाला बारह बहार
अमीराँ सो बेहतर फ़कीराँ कलातेसमज फ़र्श मख़मल बगंबर बिछाते