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कविता
जिन्हों घर झूलते हाथी, हजारों लाख थे साथी
जिन्हों घर झूलते हाथी, हजारों लाख थे साथीउन्हीं को खा गई माटी, तू खुशकर नींद क्यों सोया?
खालस
कविता
रे सम्हाल प्यारे कौन बात त बिचारी।
रे सम्हाल प्यारे कौन बात त बिचारी।गोटा पहने तिला पहने और कबून कनारी।
खालस
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ख़लास-ए-'हाफ़िज़' अज़ आँ ज़ुल्फ़-ए-ताबदार म-बादकि बस्तगान-ए-कमंद-ए-तू रुस्तगारानंद