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ग़ज़ल
जाम का ए'तिबार क्या काम-ओ-दहाँ भी कुछ नहींदैर-ओ-हरम को क्या कहूँ कौन-ओ-मकाँ भी कुछ नहीं
मयकश अकबराबादी
कलाम
ग़ुंच-सा लब बंद है शोर-ए-‘अनादिल दिल में हैलब पे है मोहर-ए-सुकूत इक शोर बरपा दिल में है
ख़्वाजा हमीदुद्दीन अहमद
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शे'र
तिश्ना-लब छोड़ा मुझे क़ातिल ने वक़्त-ए-इम्तिहाँरूह मेरी आब-ए-ख़ंजर को तरसती रह गई
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
दहन है छोटा कमर है पतली सुडौल बाज़ू जमाल अच्छातबीअत अपनी भी है मज़े की पसंद अच्छी ख़याल अच्छा
शाह अकबर दानापूरी
ग़ज़ल
दहन है छोटा कमर है पतली सुडौल बाज़ू जमाल अच्छातबी'अत अपनी भी है मज़े की पसंद अच्छी ख़याल अच्छा
शाह अकबर दानापूरी
अरिल्ल
अरिल छंद - राम भजहु लब लाइ प्रेम पद पाइया
राम भजहु लब लाइ प्रेम पद पाइयासफल मनोरथ होय सत्त गुन गाइया
गुलाल साहब
कलाम
जिस्म दमकता ज़ुल्फ़ घनेरी रंगीं लब आँखें जादूसंग-ए-मरमर ऊदा बादल सुर्ख़ शफ़क़ हैराँ आहू
जावेद अख़तर
ग़ज़ल
फ़ुग़ाँ के साथ लब तक दम-ब-दम आने से क्या हासिलदिल-ए-मुज़्तर को समझा दो कि घबराने से क्या हासिल
भोलानाथ माएल
सलोक
फ़रीदा नेहु ता लब केहा लब ता कूड़ा नेहु
फ़रीदा नेहु ता लब केहा लब ता कूड़ा नेहुकिचर तांईं रखीऐ तुटे झूम्बर मेहु
बाबा फ़रीद
साखी
लव का अंग - लब लागी तब जानिये छूटि कभूँ नहिं जाय
लब लागी तब जानिये छूटि कभूँ नहिं जायजीवत लव लागी रहै मूए तहँहि समाय