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कलाम
बुतान-ए-माह-वश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैंकि जिस की जान जाती है उसी के दिल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
न ख़्वाहाँ ताज-ए-ख़ुसरव का न मैं तख़्त-ए-सिकंदर कामुक़द्दर उस जगह ले चल भिकारी हूँ मैं जिस दर का
फ़ज़लुर्रहमान माह
ना'त-ओ-मनक़बत
ब-ख़ूबी मेहर-ए-ताबाँ माह से ता-ब-माही होबड़ा क्या उस से रुत्बा हो कि महबूब-ए-इलाही हो
अज्ञात
ना'त-ओ-मनक़बत
शाह फ़ाइक़ शहबाज़ी
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ग़ज़ल
मिलते हैं 'अख़्तर' से ख़ुद ही माह-वश ज़ोहरा-जबींये करामत क्या नई उस मुर्शिद-ए-कामिल में है
अख़्तर नगीनवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ माह-ए-रास्तीं ज़े-शबिस्तान-ए-कीस्तीवाए आफ़ताब-रूए ब-गो ज़ान-ए-कीस्ती
शैख़ जमालुद्दिन हान्सवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मज़रा-ए’-सब्ज़-ए-फ़लक दीदम-ओ-दास-ए-मह-ए-नौयादम अज़ किश्तः-ए-ख़्वेश आमद-ओ-हंगाम-ए-देरौ
हाफ़िज़
फ़ारसी कलाम
ऐ माह-ए-'आलम सोज़-ए-मन अज़ मन चिरा रंजीद:-ईवै शम-ए'-शब अफ़्रोज़-ए-मन अज़ मन चिरा रंजीद:-ई
सादी शीराज़ी
फ़ारसी कलाम
परतव-ए-महर-ए-क़दीमस्त ईं मह-ए-ताबान-ए-'इश्क़जल्वा-ए-नूर-ए-कलीमसत आतिश-ए-सोज़ान-ए-'इश्क़
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
माह-ए-मन दर पर्दः दारद ज़ुल्फ़-ए-मुश्क अफ़्शाँ हनूज़बर ने-फ़िगंदस्त पर्द: अज़ रुख़-ए-रख़्शाँ हनूज़
