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'ख़ुसरौ' 'निजाम' के बल-बल जइएमोहे सुहागन कीन्हीं रे मोसे नैनाँ मिलाय के
कहूँगा मैं क़िस्सा सुनो सब इताकहूँगा मुफ़स्सल कहानी जिता
'ख़ुसरौ' ब-कमंद-ए-तू असीरस्तबे-चार: कुजा रवद ज़े कूयत
जन्नत-उल-मावास्त जानाँ कू-ए-तूसज्दः-गाहे आ'शिक़ाँ अब्रू-ए-तू
ब-यक आमदन रुबूदी दिल-ओ-दीन-ओ-सब्र-ए-'ख़ुसरौ'चे शवद अगर ब-दीं-सा दो-सेह बार ख़्वाही आमद
'ख़ुसरौ' अज़ तू पनाह मी-जोयदऐ पनाह-ए-मन-ओ-पनाह-ए-हमः
बारे अंदेशः-ए-'खुसरौ' मी-कुनकि ब-हक़ जुम्लः जहान-ए-नमक अस्त
मा ख़ाक-ए-रहेम हम-चू 'ख़ुसरौ'दर कू-ए-कसे ब-यादगारेम
हलवाई और पायजामे में क्या निस्बत हैकंदा
कपड़े और दरिया में क्या निस्बत हैपाट
अँगरखे और पेड़ में क्या निस्बत हैकली
धूप लगे वो पैदा होय छाँव देख मुरझाएऐ री सखी मैं तुझ से पूछूँ हवा लगे मर जाए
गोटे और आफ़्ताब में क्या निस्बत हैकिरन
मकान और अनाज में क्या निस्बत हैकंगनी
आना-जाना उस का भाएजिस घर जाए लकड़ी खाए
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