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सूफ़ी लेख
शैख़ सलीम चिश्ती
मशहूर तो यूं है कि हिन्दुस्तान में इस्लाम का ज़माना मोहम्मद ग़ौरी से शुरूअ’ होता है
ख़्वाजा हसन निज़ामी
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सूफ़ी लेख
सूफ़ी और ज़िंदगी की अक़दार
हर जमाअ’त और हर गिरोह में ऐसे अश्ख़ास भी शामिल होते हैं जिन्हें शुमूलियत के बावजूद
ख़्वाजा हसन निज़ामी
ग़ज़ल
तेरा सानी कोई हुआ नहीं तेरा हुस्न हुस्न-ए-कमाल हैन जहाँ में तेरी नज़ीर है न जहाँ में तेरी मिसाल है
ख़्वाजा शायान हसन
ना'त-ओ-मनक़बत
नेको क़दम नेको निशान ख़्वाजा मु'ईनुद्दीन हसनशाह-ए-शहंशाह-ए-ज़माँ ख़्वाजा मु'ईनुद्दीन हसन
अज्ञात
ना'त-ओ-मनक़बत
शाह-ए-हसन सरताज तू ख़्वाजा हसन सुल्तान तूसाहिब-ए-’इल्म-ओ-बसीरत बंदा-ए-रहमान तू
अब्दुल्लाह अली ग़फ़्फ़ारी
ना'त-ओ-मनक़बत
कहेगा हुस्न जन्नत का हसन मौला हसन मौलातुम्हीं हो ख़ुल्द के दूल्हा हसन मौला हसन मौला
ख़ालिद नदीम बदायूँनी
ग़ज़ल
'हसन' मेरी तमन्ना है कि मैं भी मैं न रह जाऊँमिरा दिल दिल न बन पाए तो फिर बर्बाद हो जाए
ख़्वाजा शायान हसन
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़्वाजा मु'ईनुद्दीन हसन गाही नज़र बर मन फ़िगनबहर-ए-खु़दा मेरे सजन गाही नज़र बर मन फ़िगन
निज़ाम अली
ना'त-ओ-मनक़बत
हुसैन इब्न-ए-'अली ज़हरा हसन के दर का सदक़ा दोहमें भी पंजतन का दो उतारा या रसूल-अल्लाह