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कलाम
वा'दे पे नहीं आता सच है पर याद तो उस को आती हैउस जान-ए-मोहब्बत का वा'दा बातिल भी है और बातिल भी नहीं
माहिरुल क़ादरी
कलाम
तू नज़र में हो तो तूफ़ाँ क्या है मौज-ए-बह्र क्याक़ा'र-ए-दरिया में भी तू ही है सर-ए-साहिल भी तू
मयकश अकबराबादी
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ग़ज़ल
मुझे तो अब सफ़र में भी घुटन महसूस होती हैमुझे अपने नगर में भी घुटन महसूस होती है
नक़ीबुल रहमान हसनी
ग़ज़ल
घटा उठी है तू भी खोल ज़ुल्फ़-ए-’अम्बरीं साक़ीतिरे होते फ़लक से क्यूँ हो शर्मिंदा ज़मीं साक़ी
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी हैतर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है
शकील बदायूँनी
ग़ज़ल
ये राज़ की बातें हैं इस को समझे तो कोई क्यूँकर समझेइंसान है पुतला हैरत का मजबूर भी है मुख़्तार भी है